Friday, April 11, 2014

देस मेरा रंगरेज़ रे बाबू



आज यूं ही बैठे बैठे इक़बाल साहब की वो रचना याद आ गयी जो आज कल सभी को सिर्फ १५ अगस्त और २६ जनवरी को ही याद आती है - सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा। आखिर हिंदुस्तान में ऐसा क्या है जो ये सारे जहां से अच्छा लगे? शायद हमारी गंगा जमनी तहज़ीब। पीपली लाइव को वो गाना - देस मेरा रंगरेज़ रे बाबू, घाट घाट यहाँ घटता जादू ...। इस ज़मीन पर जो आया इस रंगरेज़ ने उसके रंग और अपने रंग का ऐसा ताना बाना रचा कि तबियत रंगीन हो गयी।

आज भौगोलीकरण के इस दौर में जब बदलाव इतनी तेज़ रफ़्तार से हमारी ज़िंदगियों को बदल रहे हैं, एक ख़याल आया कि ज़रा इस दौर को ग़ौर से देखा जाए। अपने इर्द गिर्द देखने पर पाया कि इस रंगरेज़ का जादू अभी थमा नहीं है। पिक्चर अभी चल रही है। मसलन, मैक डोनल्ड जैसे मंझे खिलाड़ी दुनिया भर में अपने बर्गर का लोहा मनवाकर हिंदुस्तान आये तो धीरे धीरे उन्हें भी इस जादू ने अपने असर में कर लिया - मैक आलू टिक्की और मैक पनीर टिक्का, हमारी उनकी साझेदारी। उन्हीं की तर्ज़ पर अब जगह जगह देसी खोमचे वाले भी वड़ा पाव के साथ साथ आलू टिक्की वाला बर्गर भी बनाने लगे। दिल्ली में तो ऐसे ठेले आपको हर जगह दिख जायेंगे। बैंगलोर की अम्मीज़ बिरयानी - बिरयानी वही लेकिन पैकिंग, पेशक़श और डिलीवरी किसी बहुराष्ट्रीय पिज़्ज़ा ब्रांड की तरह। वहीं मल्टीनेशनल पिज़्ज़ा ब्रांड्स भी पनीर और कीमे वाला पिज़्ज़ा बनाने लगे हैं।


हमारे यहाँ के लोग तो वैसे भी जुबां से चटोरे और मिज़ाज़ के तंदूरी हैं। एक मियाँ साहब जो मुग़लई अच्छा बनाते थे, उन्होंने भी अपनी दुकान का नाम बदल लिया है। अंग्रेजी के शब्दों का उपयोग कर के कूल कर लिया है। अब दक्षिण भारतीय लोग उनके यहाँ टंगड़ी क़बाब और ज़ाफ़रानी पुलाव के बाद बाहर खड़े बिहारी भैया के यहाँ से पान खाते हैं। उन्हीं भैया से जाना के हुक्के फिर बिकने लगे हैं, पर अब ब्रांड वाले पैकेजिंग वाले, पुराने देसी वाले नहीं, नए अंग्रेजी नाम वाले। पान का स्वरुप भी बदल रहा है। लोग ज़र्दा और सुपारी कम खाने लगे हैं और शायरों की महफ़िलें भी नहीं रहीं। अब पान धीरे धीरे डिजर्ट की नयी भूमिका निभाने लगा है। गुलकंद वही बस थोड़ी ज्यादा मात्रा में और साथ में चेरी जो कभी उत्तर भारत में हेमामालिनी के नाम से मशहूर हुआ करती थी। आज पान के स्वाद की च्युइंग गम आ गयी और कई टपरों पे वनीला और चॉकलेट फ्लेवर के पान मिलने लगे।  पान आज भी वही बनारसी, कलकत्ता और महोबा वाला।

हल्दीराम के नमकीन देश छोड़िये विदेश में भी मशहूर हो चुके हैं। नई टैग लाइन है - इंडियन स्नैक्स। रसगुल्ले पैकिंग में आने लगे - स्वाद वही बंगाली छैना, बस थोड़े अतिरिक्त प्रेसेर्वेटिव्स के साथ। सोन पपड़ी के पैकेट तो शायद ही किसी दुकान में ना दिखाई दें। गरम गरम रसगुल्ले के साथ नया कॉम्बिनेशन है वनीला, स्ट्रॉबेरी आइसक्रीम। कोक और पेप्सी के साथ दुकान में रखे फ्रिज में मिल जायेगी अमूल की मस्ती छांछ। जलजीरा भी खुद को रीइनवेंट करने में लगा है सोडे के साथ, नाम - जीरा फ़िज़ (Jeera Fizz) ।

उत्तर पूर्व के प्रसिद्ध मोमोज़ आज पूरे हिंदुस्तान में फेमस और एक टीवी सीरियल के बाद गुजरात के महिला उद्योग का खाखरा पैक होकर चेन्नई के किसी सुपर मार्केट से होता हुआ अपने किसी मद्रासी अन्ना के घर को जा रहा। दिवाली के दीपक भी पैक हो कर मॉल में बिक रहे और सुप्रसिद्ध योगाचार्य अपने योग की सीडी मार्किट में लॉन्च कर रहे। सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति के बाद उत्तर भारत से बैंगलोर आये लोग अपनी होली के रंगों में दक्षिण भारत को भी रंगने लगे हैं। लोग धीरे धीरे हिंदी भी अंग्रेजी के अक्षरों का इस्तेमाल कर के लिख रहे और हमारे श्री अशोक चक्रधर साहेब अपने पूरे चमन के साथ फेसबुक और ट्विटर पर आ रहे।

2 comments:

  1. बड़ी सहजता से आपने एक गंभीर मुद्दे की तरफ ध्यान आकृष्ट किया। पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ। अच्छा लगा।

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