Friday, May 2, 2014

आवेश



आवेश उसको आख़िर में 
अकेला छोड़ गया 
पानी तो कुछ देर को 
बरस कर गुज़र गया 
टपका छत से देर तलक 
टपकता छोड़ गया 

आने के पाखंडों को 
गिनवाया इस क़दर उसने 
भलाई ख़ुद की गिनाने को 
कलपता छोड़ गया 

निचोड़ के उसके इतर को 
इतनी कड़वाहट भर दी 
खुली हवा की सांस को 
तरसता छोड़ गया 

आँखें सुर्ख़ अंगारों सी 
ताप दूर से भभकता है 
नफ़रत की इक आग में 
झुलसता छोड़ गया 

4 comments:

  1. प्रभावशाली लेखनी! :)

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  2. Accha likha hai aapne..likhte rahiye.

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  3. मर्मस्पर्शी ...विचारणीय पंक्तियाँ

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