Friday, June 27, 2014

एक ज़रा ठहराव चाहता हूँ



एक ज़रा ठहराव  चाहता हूँ 
कंपकंपाती रीढ़ की सिहन नहीं 
चटचटाती आंच का अलाव चाहता हूँ 
एक ज़रा ठहराव चाहता हूँ 


झिरझिराती काई के पिरामिड नहीं
क्षितिज से उमड़ी बयार चाहता हूँ 
डबडबाती आँख कि गड़न नहीं 
झिलमिलाती फुल्की फ़ुहार चाहता हूँ 
एक ज़रा ठहराव चाहता हूँ 


आपाधापी से भरी सुनामी नहीं 
बुड़बुड़ाती बारिश कि नाव चाहता हूँ 
खून से सनी कटार नहीं 
बरगद कि छाँव में 
सुकून भरी मज़ार चाहता हूँ 


एक ज़रा ठहराव चाहता हूँ 

1 comment:

  1. सच है ....भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में सुकून के दो पल भी नहीं

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