Saturday, September 27, 2014

कव्वे और काला पानी


कव्वे और काला पानी। निर्मल वर्मा की लिखी किताब अभी हाल ही में पढ़ी। एक ही शब्द है - "अद्भुत"। निर्मल वर्मा की मैंने एक किताब जलती झाड़ी पहले भी पढ़ी थी और मैं उनका पुराना मुरीद हूँ। निर्मल वर्मा की कहानियाँ कुछ लंबी होती हैं और पाठक को खींच लेतीं हैं। जिस प्रकार क्वांटम जगत में ऑब्जर्वर भी प्रयोग का ही हिस्सा बन जाता है ठीक उसी तरह निर्मल वर्मा की कहानियाँ भी पाठक को अपने में समेट लेतीं हैं। पाठक भी बाह्य जगत से टूट कर उनके बनाए क्वान्टम जगत में चला जाता है जहां निर्मल वर्मा पाठकों के मनोभाव को कंट्रोल करते हैं। जैसे कोई संगीतकार अपने वाद्य यंत्रों से खेलता है वैसे निर्मल वर्मा पाठक के मनोभावों से खेलते हैं। कई बार लगता है कि उनकी कहानी एक यात्रा है जिसमें कि ऊपर लिखा मोटा मोटा शीर्षक किसी स्टेशन सा है और पाठक वहाँ किसी गाड़ी में सवार होता है और शब्दों पर टिकी छतों से होते हुए कहानी में यात्रा करता है। कहानी को होते हुए महसूस करता है। जब कहानी पढ़ता है तो शायद पृष्ठों के भीतर किसी हिज्जे सा वो भी बन जाता है।
इस पुस्तक में सात कहानियाँ हैं। मेरे पसंदीदा है "धूप का एक टुकड़ा", "आदमी और लड़की" एवं "कव्वे और काला पानी"। पुस्तक में कुल 220 पृष्ठ हैं और पुस्तक का मूल्य 180 रुपये है। पुस्तक भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित है। हिन्दी साहित्य में रुचि रखने वालों के लिए अनिवार्य। आप इसे Amazon से खरीद सकते हैं.

1 comment:

  1. काफी अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर
    अच्छा ब्लॉग है आपका !
    आपका ब्लॉग फॉलो कर रहा हूँ
    आपसे अनुरोध करता हूँ की मेरे ब्लॉग पर आये
    और फॉलो कर अपने सुझाव दे

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