Friday, August 12, 2016

मिसेज़ फनीबोन्स



अगस्त महीने की दूसरी किताब थी - "मिसेज़ फनीबोन्स"। किताब की लेखिका हैं ट्विंकल खन्ना। ट्विंकल खन्ना, जिन्हें ज़्यादातर लोग कई रूप में जानते हैं - राजेश खन्ना और डिंपल कपाड़िया की बेटी, अक्षय कुमार की बीवी और एक फ्लॉप एक्ट्रेस। लेकिन इनके अलावा इनकी एक शख्सियत और है। ये बात अक्सर मध्यम वर्गीय लोगों में ईर्ष्या उपजाती है कि सम्पन्न वर्ग के पास अपने पसंदीदा करियर के तमाम विकल्प मौजूद हमेशा ही रहते हैं। अगर एक में असफल हो जाओ तो दूसरे में हाथ आजमाओ। ये बात किसी हद तक सही होते हुए भी प्रतिभा का पर्याय तो नहीं बन सकती। ट्विंकल खन्ना अपने एक्टिंग करियर में असफल होने के बाद इंटीरियर डिसाइनर बन गईं और उसके बाद टाइम्स ऑफ इंडिया में एक कॉलम भी लिखने लग गईं। आप भले ही राजेश खन्ना या अमिताभ बच्चन के वंशज हों पर यदि प्रतिभा नहीं है तो पब्लिक पसंद नहीं करेगी। आप भले ही बिना किसी अनुभव के अभिनेता या कॉलम्निस्ट या लेखक बन जाएँ पर आपको दर्शक या पाठक तभी पसंद करेंगे जब आपके अभिनय या आपकी लेखनी में दम होगा। इधर कई लेखक अपनी किताब सेल्फ-पब्लिश करवा रहे हैं पर जब तक पढ़ने वाले को आप बांध नहीं पाओगे, आपको पाठक मिल ही नहीं पाएंगे।

'मिसेज़ फनीबोन्स' एक दमदार किताब है। पूरी किताब में ट्विंकल खन्ना का सेंस ऑफ ह्यूमर बेहद शानदार लगा है। किताब के द्वारा वो एक ऐसी महिला के रूप में सामने आतीं हैं जिनका दिमाग बिलकुल सही जगह पर है। ट्विंकल की लिखावट पर मोनी मोहसीन की 'द डायरी ऑफ अ सोशल बटरफ्लाय' का असर स्पष्ट रूप से समझ आता है। लेकिन प्रेरणा लेने और कॉपी करने में अंतर होता है। ट्विंकल ने कई जगहों से प्रेरणा ली है लेकिन अपने मूल को उन प्रेरणाओं की सहाता से बेहतर ही बनाया है। प्रेरणा का मकसद भी दरअसल यही होता है। एक जगह तो menstruation पर उन्होनें लिखा है जिसकी भूमिका standup comedian अदिति मित्तल के इसी विषय पर बनाए गए एक जोक से ली है। वैसे भी बॉलीवुड वाले थोड़ा बहुत कॉपी कर भी लें तो पब्लिक उन्हें माफ कर देती है, और ट्विंकल ने तो फिर भी अपनी मौलिकता बरकरार रखी है।

बहुत पहले शफ़ी इनामदार और राकेश बेदी का एक कॉमेडी शो टीवी पर आया करता था - 'ये जो है ज़िंदगी' जिसमें ज़िंदगी की छोटी-छोटी घटनाओं पर observational कॉमेडी की जाती थी। जसपाल भट्टी का एक शो था 'फ्लॉप शो', वो भी observational humor पर ही आधारित था। हाल के कोमेडियन्स में राजू श्रीवास्तव और बिसवा कल्यान का बेहद शानदार observation है। ट्विंकल की शैली भी observational humor के ही इर्द-गिर्द घूमती है। जो घटनाएँ हमारे सभी के जीवन में घटती हैं उन छोटी-छोटी बातों को बहुत बढ़िया तरीके से उन्होनें लिखा है। एक जगह एक थर्मामीटर के बारे में लिखा है जो सिर्फ सेल्सियस में बुखार बताता था और तब उन्हें मिला विक्स कंपनी का एक डिजिटल थर्मामीटर जो उन्हें इतना पसंद आया कि लगा कि अब और किस किसका temperature ले लूँ? उन्होनें menstruation से ले कर मदर-इन-लॉं तक के बारे में लिखा है, वालेंटाइन डे से ले कर करवाचौथ तक के बारे में लिखा है। डोमेस्टिक हेल्प्स से ले कर पड़ोसियों के बारे में भी, pets से ले कर perverts के बारे में भी, अपने बच्चों के बारे में भी और उनके डाइपर्स के बारे में भी। ये सब ऐसी बातें हैं जो हम सभी की ज़िंदगियों में होती रहती हैं। ट्विंकल की सबसे अच्छी बात ये है कि वो खुद के ऊपर हंसने का माद्दा रखतीं हैं। अपने नाम के बारे में भी मज़ाक करतीं हैं और अपनी एक्टिंग के हुनर का खुद मज़ाक उड़ाती हैं। अपने एथीस्ट बिलीफ से लेकर अपने अरेस्ट वॉरेंट का भी मज़ाक बनातीं हैं। शुरुआत में भले किताब सोशल बटरफ्लाय से influenced लगती है लेकिन धीरे-धीरे ट्विंकल पढ़ने वाले को बांध पाने में न केवल सफल ही रहतीं हैं बल्कि ये एहसास करा पाने भी कि "अरे! ऐसा तो हमारे साथ भी होता है!!".

इन सब हंसी-मज़ाक के बीच कहीं-कहीं उन्होनें आधुनिक प्रगतिशील सोच के साथ थोड़ा-बहुत ज्ञान भी डाल दिया है जो कि किताब की चमक को और उम्दा करता है। एक घटना का ज़िक्र है जब वो जर्मनी के किसी शहर के अस्पताल जातीं हैं तो देखतीं हैं कि जो भी इलाज के लिए आया है, अकेला आया है। भारत में तो अगर कोई अस्पताल जाता है तो बहुत नहीं तो एक-आध बंदा तो साथ होता ही है। इस संदर्भ में लिखा है

Looking at these old people shuffling along by themselves, all I can say is: "We may have potholed roads but at least we have many people willing to travel with us on them".

किताब बहुत ज़बरदस्त है और पढ़ने लायक है। किताब को आप Amazon से खरीद सकते हैं

3 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "बस काम तमाम हो गया - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. सुन्दर प्रस्तुति!

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