यूं सफ़र-ए-हयात का अंजाम लिख दिया
हर ख़ुशी हर ग़म पे तेरा नाम लिख दिया
ख़ुद को ख़त लिखते रहे तेरे नाम के
आख़िरी अलविदा भी कल शाम लिख दिया
रात भर सोचा किए न सोचेंगे उन्हें
सुबह सुबह उन्हीं को सलाम लिख दिया
हिक़ारत के अल्फ़ाज़ निचोड़कर मैंने
उस सियाही से नया कलाम लिख दिया
गुनाह जिस जिस के अपने सिर लिये
सलीब पे उस उस ने मेरा नाम लिख दिया
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वाह
ReplyDeleteThank you Sushil ji
Deleteबहुत ही सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत सुंदर
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