हर चन्द रोज़ों के बाद, अब इतवार नहीं आते
आ भी गए जो गर भूले से, तो वैसे शानदार नहीं आते
यूं तो अब भी भीग जाते हैं बारिश में कभी-कभी
अंतस को जो तर कर छोड़े, वैसे बौछार नहीं आते
दस पैसों में झोली भर के ख़ज़ाना कंपटों का
ठसाठस भरे दड़बों में अब, नज़र वो बाज़ार नहीं आते
जब से लड़के शहर गए, चाँद नोट कमाने को
एकजुट हो खिलखिलाते, अब त्यौहार नहीं आते
नए दोस्त आते हैं अब भी, हिक़ारत साझा करने को
अपने कंचे मुफ्त में दे दें, यार वो दिलदार नहीं आते