कंपकंपाती रीढ़ की सिहरन नहीं
चटचटाती आंच का अलाव चाहता हूँ
एक ज़रा ठहराव चाहता हूँ
झिरझिराती काई के पिरामिड नहीं
क्षितिज से उमड़ी बयार चाहता हूँ
डबडबाती आँख कि गड़न नहीं
झिलमिलाती फुल्की फ़ुहार चाहता हूँ
एक ज़रा ठहराव चाहता हूँ
आपाधापी से भरी सुनामी नहीं
बुड़बुड़ाती बारिश कि नाव चाहता हूँ
खून से सनी कटार नहीं
बरगद कि छाँव में
सुकून भरी मज़ार चाहता हूँ
एक ज़रा ठहराव चाहता हूँ
सच है ....भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में सुकून के दो पल भी नहीं
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