Saturday, March 28, 2020

मूर्ख बंदर - पंचतंत्र

एक राजा को एक बंदर इतना अच्छा लगा कि उसने अपनी हिफाज़त के लिए अपने सैनिकों को हटाकर उसे तैनात करवा लिया।एक दिन सोते वक़्त एक मक्खी राजा के ऊपर आ कर बैठ गई।
चौकीदार बंदर ने राजा की तलवार उठा कर मक्खी पर हमला कर दिया।
मक्खी उड़ गई।
राजा मर गया।
किसी ने कहा कि बंदर के intentions अच्छे थे, बस execution में कसर रह गई।


Thursday, March 5, 2020

गुल्लक




गली के मुहाने से मुड़ते हुए एक बारगी वो पहचान ही नहीं पाया कि ये वही गली है। उसने मुड़कर पीछे देखा। दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था। पुलिस की गश्त का सायरन दूर किसी और सड़क पर बज रहा था। मेन रोड पर आड़ा पड़ा पीला बैरिकेट, सड़कों पर बिखरे पत्थर और काँच के टुकड़े, और उन सबके बीच घुप्प अंधेरे के लिए नाकाफ़ी से खड़े बेजान पीली रोशनी के खंबे। शाम से ही कर्फ़्यू लगा हुआ था - शूट एट साइट के ऑर्डर्स थे! वो गली की तरफ दोबारा मुड़ा। दोनों बाजू बने मकानों की कतारों पर नज़र डाली। दीवारों पर धुएँ की कालिखें। चारों तरफ़ धुएँ के बादल जिसमें ये पता लगाना तक मुश्किल था कि वो किस घर से उठ रहा था। गली का रास्ता मलबे से पूरी तरह पट चुका था। ईंट, पत्थर, शीशे, लोहे के टूटे दरवाज़े, टीन की छतें, टायर, लोहे के सरिये, टूटी कुर्सियाँ, टेबलें, ज़िंदगियाँ!

दीवार से सटे अंधेरे में दबे पाँव वो आगे बढ़ता चला गया। बीच-बीच में उसका पैर मलबे के किसी डिब्बे या टीन पर पड़ जाता। एक आवाज़ होती और वो वहीं ठहरकर खुद को बिना हिले-डुले अंधेरे में छुपाने की कोशिश करता। जब यक़ीन हो जाता कि कोई नहीं है तब दोबारा आगे बढ़ता। एक के बाद एक अंधेरे मकान। कुछ ख़ाली थे और बाक़ी अपनी लाइटों और खिड़कियों को बंद किए भीतर से कुंडे हुए। अंधकार जब किसी आबादी की नियति बन जाता है तो क्या जीवित क्या मृत वो सभी के हिस्से आता है।

वो चलते-चलते एक मकान के सामने आ कर रुक गया। भीतर से धुआँ अभी भी उठ रहा था। उसने मुड़कर गली के दोनों किनारे देखे और भीतर घर में घुस गया। घुप्प अंधेरा! कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। उसने अपने मोबाइल की टॉर्च जलाई, एक मुरझाई सी रोशनी में घर की कालिखों को टटोला और टॉर्च को दीवार में बने एक आले में रख दी। जगह-जगह राख़ के ढेर और उनके बीच से उठता धुआँ! काँच के टुकड़े चारों तरफ बिखरे पड़े थे। फर्नीचर जल चुका था। पंखों के झल्ले मुड़ गए थे। बाहर के कमरे के बीचों-बीच तीन गैस सिलेन्डर पड़े थे। दो खड़े, एक आड़ा। खिड़कियाँ सारी जल चुकीं थीं। टॉर्च लिए-लिए वो एक आईने के सामने आया। अपनी हथेली से उसकी कालिख हटाई। आईने में एक चेहरा उठा। वो थोड़ी देर उसे देखता रहा। फिर उसने अपनी टॉर्च उठाई और भीतर के दरवाज़े की ओर चल दिया। दरवाज़े के बीचों-बीच पहुँच कर वो ठहर गया। उसने अपनी एड़ियाँ उठाई और वजन पंजो पर लेते हुए एक हाथ से दरवाज़े के ऊपर बने आले में कुछ टटोला। एक लोहे के गरम डिब्बे पर उसका हाथ पड़ा। उसने उसे खींचा लेकिन गरम होने की वजह से वो उसे पकड़ नहीं पाया। डिब्बा नीचे गिर गया। ज़ोर की आवाज़ हुई। उसने फर्श पर टॉर्च घुमाई। वो एक गुल्लक थी। उसने अपने जेब से एक रुमाल निकाला और उसे पोंछा। उसकी आँखों से दो आँसू गरम राख़ के ढेर पर पड़े और ग़ायब हो गए।

ये उसका घर था!

एक दिन एक भीड़ आई और उससे उसका सब कुछ छीन कर ले गई।उसका घर, उसकी ज़िंदगी, उसका बच्चा।

वो दोबारा लौटा था। रात के अंधेरे में। कुछ ढूँढने की ख़ातिर।

सब कुछ खत्म हो जाने के बाद...आख़िरी निशानी की एक छोटी-सी तमन्ना की ख़ातिर।