प्रतिनिधि कहानियाँ - अखिलेश। जब मैंने इस पुस्तक का पिछला कवर देखा तो वहाँ पुस्तक के अंदर दी गयी मनोज कुमार पाण्डेय जी की भूमिका का अंश दिया था। मनोज जी लिखते हैं की अखिलेश की कहानिया 'बातूनी' कहानियाँ होती हैं। वाकई, बात एक दम सच है। इतनी लंबी कहानियाँ कि आप पढ़ते पढ़ते खो जाते हैं एक अलग ही लोक में। उनकी कहानियाँ पढ़ते हुए मुझे मेरे एक दोस्त के बाबूजी याद आ गए। अपने ग्रेजुएशन के हम दोस्त लोगों की मंडली हमारे ही एक मित्र के ढाबे पे जाया करती थी खाना खाने। उनके बाबूजी दिन भर के आने जाने वालों से इतना हाल चाल लिया करते थे कि कोई उनसे बात करने बैठ भर जाये, उनके पास मसाले की कभी कमी नहीं होगी। अखिलेश की कहानियाँ भी वैसी ही हैं। कहानियाँ कम और चउरा ज़्यादा। लेकिन ये कहानियाँ बड़ी ईमानदार हैं। अखिलेश उन लेखकों में से हैं जो अपनी कहानियों में नाहक गंभीरता नहीं घुसेडते। कहने का अर्थ ये नहीं कि कहानियों में गंभीरता का अभाव है बल्कि ये कि कहानियाँ किसी आडंबर में नहीं फँसती। ऐसा लगता है कि कहानी शुरू हुई और साथ ही दुनिया जहान की पंचायत भी। जैसे दीवाली का कोई अनार। एक स्रोत से न जाने सितारे एक साथ, ठीक वैसे ही। कहानियाँ बाहर की ओर खुलती हैं और पाठक बड़ी आसानी से उनमें जा सकता है। कहीं कहीं कहानियों में चुहलबाजी भी है जो गुदगुदाती भी है। इन सब खूबियों के बावजूद कहानियाँ यथार्थवादी हैं।
पुस्तक में 6 कहानियाँ हैं। राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में 204 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य 59 रूपये है। किताब को आप Amazon से खरीद सकते हैं।
No comments:
Post a Comment