उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था। अभी वो अपने बिस्तर से उठा भी नहीं था कि पहली बार मोबाइल की घंटी बजी। इत्तेला रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। पापा जिस ट्रेन से सफर कर रहे थे उसका एक डिब्बा गोधरा में जला दिया गया था। उसी ट्रेन से उसको और मम्मी को भी जाना था। लेकिन उसकी तबियत ख़राब हो जाने की वजह से वो और मम्मी नहीं जा पाए। उस पहली घंटी के बाद तो घण्टियों का तांता लग गया। कभी कॉल वाली बड़ी घंटी और ना उठाने पर SMS की छोटी घंटी। मम्मी भी तब उसकी दवाई लेने मेडिकल स्टोर तक गईं थीं।
खबर मिलते ही उसने टीवी चालू किया। डिब्बे में लगी आग की लपटों को अपनी आँखों में बटोरे एक एंकर स्क्रीन पर ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था। उसने पापा का फोन भी मिलाया लेकिन उस रूट की सभी लाइने व्यस्त थीं। बीच-बीच में वो SMS के इनबॉक्स में जा कर शुभचिंतकों की प्रार्थनाओं को बटोर लेता। उसे हैरानी भी थी कि पापा के इतने सारे हितैषी रातों-रात कहाँ से आ गए। उन्होनें कभी किसी से अपने सम्बन्धों को मधुर रहने दिया हो। सोसाइटी हो या रिश्तेदारी, सभी जगह उनकी रौबदार सरकारी नौकरी की अकड़ ने दूसरों को हमेशा कमतर ही आँका। उसे तो बीच-बीच में इन हितैषियों की प्रार्थनाओं पर शक भी होता था।
आग की लपटों और उससे उपजे धुएँ के साथ काली धूसर आशंकाएँ भी उमड़ रहीं थी जिनका समय के आयाम में फैलना अभी बाक़ी था। लेकिन टीवी स्क्रीन से उठती इंसानी गोश्त की बदबू को उसने सूंघ लिया था। उस धुएँ और आशंकाओं के डर ने उसकी रगों की पटरियों पर दौड़ते सियाह ख़ून की रफ़्तार को और तेज़ कर दिया था। चंद ही मिनटों में उसने ख़ुद को सुलगते हुए एक डिब्बे में क़ैद पाया। उसने देखा कि धुएँ की तैरती अमूर्त्य रेखाओं के बीच ढेर सारी आकृतियाँ अलग-अलग कोनों में भाग रहीं हैं। धू-धू करती किसी सनातन आवाज़ की पृष्ठभूमि के बीच चीखती उन आकृतियों ने तभी अक्षरों, हलंतों, नुक्तों और मात्राओं का रूप ले लिया। देखते ही देखते उन काली पहचानों ने अपनी-अपनी वैयक्तिकता खो दी और उनके बीच से एक नया manifestation उभरा। लिखा था 'ब्रेकिंग न्यूज़'। उस नए साकार manifestation के पीछे एक विडियो फुटेज लूप में डाल दी गई थी। उसे यक़ीन था कि ये फुटेज कालांतर तक अब यूं ही चलती रहेगी।
तभी नेपथ्य से एक आवाज़ सुनाई दी। आवाज़ ने दावा किया कि वो एक संवाददाता है। लूप वाली विडियो फुटेज को ऊपर की बर्थ पर फेंक दिया गया लेकिन डिब्बे में बनी खिड़की से उसे देखा जा सकता था। लगता था कि देश के collective conscience की याद्दाश्त पर किसी को भरोसा नहीं था। बाकी के कम्पार्टमेंट में दिखाई दिया टीआरपी की आंच में झुलसता वही एंकर। एयर कंडीशन न्यूज़-रूम में सुलगता एंकर पूरी शिद्दत से सामूहिक चेतना को यकीन दिला देना चाहता था। उसे ये नहीं पता था कि यक़ीन दिलाना किस बात का है, लेकिन गले की उफनती नसों से वो नेपथ्य के संवाददाता को खरोंचने में लगा था। कुछ भी exclusive ना मिल पाने पर टीआरपी की आंच और तेज़ हो जाती जिससे नसें और भींच जातीं, आवाज़ और तेज़ हो जाती।
वो उस manifestation से, उस टीआरपी की आंच से और नेपथ्य की उस आकाशवाणी से भाग कर दोबारा अपने collective conscience के दड़बे में आने के लिए छटपटाने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी बंद हो गई, अनंतकालीन विडियो फुटेज वाली खिड़की भी गायब हो गई, और काले उदास ब्रेकिंग न्यूज़ के manifestation की जगह अवतरित हुआ स्वर्ग से उतरे रंगों का एक चमचमाता स्वप्नलोक - एक कमर्शियल ब्रेक। वो जल्दी से हाँफता हुआ उस जलते हुए डिब्बे से बाहर आ गया।
उसने एक बार फिर पापा का फोन मिलाया और SMS के इनबॉक्स में एक बार फिर गोता लगा कर चंद प्रार्थनाओं को बटोरा। जब आशंकाएँ अपनी चरम तक पहुँच जातीं हैं तो इंसानी दिमाग को एक धोखा होने लगता है। एक वहम - उम्मीद का वहम। पापा का रिज़र्वेशन उस डिब्बे में थोड़े ही था जिसमें आग लगी है! वहम को काटता एक दूसरा वहम - 'Us versus Them' की तरह। लेकिन अगर अब दंगे भड़क उठे तो?
तभी सारे बाज़ारवादी रंग अचानक गायब हो गए। ब्रेक ख़त्म होते ही उदास रंग वाला नया प्रोडक्ट स्क्रीन पर दोबारा launch हुआ। वही एंकर दोबारा स्क्रीन पर लौटा।
इस बार उसकी नसें उतनी भींचीं नहीं लग रहीं थीं। उसने थोड़ा मिनरल वॉटर भी पी लिया था। आते ही उसने सबसे पहले वही शाश्वत वीडियो फुटेज चलाई। पिछली बार की तरह कुछ exclusive ना मिल पाने की झुंझलाहट अब उसके चेहरे पर नहीं थी। एंकर ने स्क्रीन से अपने हाथ बाहर निकाले और उसे उसके गिरेबान से पकड़ कर दोबारा उस झुलसते डिब्बे में खैंच लिया। डिब्बे की ये आग अब कभी भी नहीं बुझने वाली थी, वो समझ चुका था। गिद्ध के समान दूरदृष्टि रखने वाले एक्स्पर्ट्स का एक पैनल स्क्रीन पर अवतरित हुआ। टीआरपी के लिए अदने से संवाददाता पर निर्भरता ख़त्म हुई। सभी एक्स्पर्ट्स को एक-एक खिड़की वाली सीट दे दी गई थी। सारे एक्स्पर्ट्स बारी-बारी अपने-अपने पिंजरे खोलते और अपने-अपने तोते से सलाह-मशविरा करके भविष्यवाणी करते। उनकी सधी-सपाट आवाज़ें उसकी रीढ़ में कंपन पैदा कर रहीं थी। एक नई आग लगाई जा रही थी। उसे लगा कि उसकी सांस भीतर नहीं आ रही है। डर के मारे उसने अपनी आँखें और कान बंद कर लिए। दूर से एक धीमी आवाज़ सुनाई दी। शायद उसके भीतर ही से - 'शाहादत ज़ाया नहीं जाएगी'। तभी एक और ब्रेक आया और अपने आप को अपनी ही बैठक के सोफ़े पर बैठा पाया।
इस बार उसकी नसें उतनी भींचीं नहीं लग रहीं थीं। उसने थोड़ा मिनरल वॉटर भी पी लिया था। आते ही उसने सबसे पहले वही शाश्वत वीडियो फुटेज चलाई। पिछली बार की तरह कुछ exclusive ना मिल पाने की झुंझलाहट अब उसके चेहरे पर नहीं थी। एंकर ने स्क्रीन से अपने हाथ बाहर निकाले और उसे उसके गिरेबान से पकड़ कर दोबारा उस झुलसते डिब्बे में खैंच लिया। डिब्बे की ये आग अब कभी भी नहीं बुझने वाली थी, वो समझ चुका था। गिद्ध के समान दूरदृष्टि रखने वाले एक्स्पर्ट्स का एक पैनल स्क्रीन पर अवतरित हुआ। टीआरपी के लिए अदने से संवाददाता पर निर्भरता ख़त्म हुई। सभी एक्स्पर्ट्स को एक-एक खिड़की वाली सीट दे दी गई थी। सारे एक्स्पर्ट्स बारी-बारी अपने-अपने पिंजरे खोलते और अपने-अपने तोते से सलाह-मशविरा करके भविष्यवाणी करते। उनकी सधी-सपाट आवाज़ें उसकी रीढ़ में कंपन पैदा कर रहीं थी। एक नई आग लगाई जा रही थी। उसे लगा कि उसकी सांस भीतर नहीं आ रही है। डर के मारे उसने अपनी आँखें और कान बंद कर लिए। दूर से एक धीमी आवाज़ सुनाई दी। शायद उसके भीतर ही से - 'शाहादत ज़ाया नहीं जाएगी'। तभी एक और ब्रेक आया और अपने आप को अपनी ही बैठक के सोफ़े पर बैठा पाया।
पापा का नंबर दोबारा डायल किया। उस रूट की सभी लाइनें अभी तक व्यस्त थीं। तभी स्क्रीन पर किसी बीमा कंपनी के विज्ञापन के तले एक पट्टी ने गुज़रना शुरू किया। सेंसेक्स 10 अंकों की मामूली बढ़त के साथ खुला। सभी कंपनियों के शेयरों की कीमतें ट्रेन के डिब्बों की तरह धड़धड़ाते गुज़र गईं। उनके पीछे इंसानी ज़िंदगी की कीमत बताते चंद हेल्पलाइन नंबर भी भागे जा रहे थे। इससे पहले कि एंकर दोबारा आ कर उसे उसके सोफ़े से खैंच ले जाए उसने उन भागते नंबरों की एक छाप मोबाइल स्क्रीन पर चिपका कर फोन मिलाया। नंबर इंगेज जा रहा था। वो दोबारा डायल करता कि ब्रेक ख़त्म हो गया और उसका सोफ़ा एक साइड लोअर बर्थ में बदल गया। वो खिड़की से बाहर नीचे की ओर देखने लगा। बाज़ार के भावों की लिस्ट गुज़र रही थी। इसके बाद शायद घायलों या मरने वालों की भी कोई लिस्ट गुज़रे। उसे खयाल आया कि रिज़र्वेशन तो उसका और मम्मी का भी था। उन दोनों के मौजूद ना होने पर अगर उन लोगों का नाम मरने वालों की लिस्ट में डाल दिया गया तो?
तभी मोबाइल की घंटी बजी और स्क्रीन पर पापा का नाम लिखा आया। साथ में दरवाजे की भी घंटी बजी। वो दरवाजा खोल कर अपनी मम्मी को देखना चाहता था। फोन उठा कर पापा से बात करना चाहता था। लेकिन तभी उसके चारों ओर धुएँ का एक गुबार उठा। उसकी आँखेँ जलने लगीं। उसने महसूस किया कि फोन और दरवाजे की घंटी धीमी होती जा रही है। वो कहीं दूर... बहुत दूर निकल आया है। कुछ आवाजें तेज़ होती जा रहीं हैं - 'ज़ाया नहीं जाएगी! ज़ाया नहीं जाएगी! ज़ाया नहीं जाएगी!' उसने एक जुलूस को उमड़ते देखा। अनंत तक फैला जुलूस। धुआँ, जुलूस, नारे। बस! अचानक उसने पाया कि वो भी जुलूस के साथ मुट्ठी भींचे चला जा रहा है। एंकर हंस रहा है। तोते चिल्ला रहे हैं। धुआँ गहरा रहा है। धुएँ के पार, सुदूर कहीं, उसे मम्मी-पापा के धुँधलाते चेहरे दिखाई दिये। पूरी ताक़त से अपने आँख-कान बंद कर लिए और एक बार फिर कमर्शियल ब्रेक का इंतज़ार करने लगा - अपनी दुनिया में वापस लौटने के लिए।
विडियो फुटेज लूप में लगातार चलती जा रही थी।
विडियो फुटेज लूप में लगातार चलती जा रही थी।
अच्छा बाँधा है।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशील जी.
DeleteSuperb..
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