वो ख़ुश-आमदीद आब-ओ-हवा बताते रहे
सनक को भी बादशाह की अदा बताते रहे
अंतिम तिनके के भी हाथ से छूटने तलक
वो ख़ुद को हमारा ना-ख़ुदा बताते रहे
वो जानते थे हमारे जुनून-ए-इश्क़ की इंतेहा
बस आँखों में आखें डाल बेवफ़ा बताते रहे
लफ़्ज़ों का हमारे यूं गला घोंटने के बाद
सनक को भी बादशाह की अदा बताते रहे
अंतिम तिनके के भी हाथ से छूटने तलक
वो ख़ुद को हमारा ना-ख़ुदा बताते रहे
वो जानते थे हमारे जुनून-ए-इश्क़ की इंतेहा
बस आँखों में आखें डाल बेवफ़ा बताते रहे
लफ़्ज़ों का हमारे यूं गला घोंटने के बाद
आंखों की हलचल को गुस्ताख़ सदा बताते रहे
हमारे अंधे हो जाने के बहुत पहले ही वो
रात को दिन औ' शाम को सुबहा बताते रहे
देखा था उस शख़्स को कभी पत्थर की शक़्ल में
बताने वाले हालांकि उसे ख़ुदा बताते रहे
Behtareen!!!
ReplyDelete:-)
Deleteवाह
ReplyDeleteधन्यवाद सुशील जी!!
Deleteबहुत शुक्रिया !!
ReplyDeleteलाजवाब ,सभी शेर शानदार
ReplyDeleteआभार!
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