आँखों में जो सपना था, वो ही टूट गया
रिश्तों में जो धागा था, वो ही टूट गया
डूबता तो मैं नहीं, यूं देर तलक लेक़िन
हाथों में जो तिनका था, वो ही छूट गया
कैसे बुझेगी प्यास अब, सूखते लबों की
जिस बरतन में पानी था, वो ही टूट गया
बिखरता तो नहीं, मैं इतनी जल्दी लेक़िन
आइना जो समेटे था, वो ही टूट गया
आस बनी रहनी चाहिए!!! बेहतरीन अभिव्यक्ति अभिषेक भाई...
ReplyDeleteHi thanks foor posting this
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