Friday, March 7, 2014

सफ़र


तय करना है समय की इस दूरी को 
कभी चल कर 
कभी तेज़ी से भाग कर 
कभी सुस्ता कर 
किसी पेड़ की नर्म छाँव में 
अन्जानी-सी इस यात्रा अधूरी को 
तय करना है समय की इस दूरी को 

सुबह का जब आग़ाज़ हुआ था 
ये सफ़र भी शुरू तभी हुआ था 
है सफ़र ये बहुत ही लम्बा 
और है ये बहुत ही कठिन भी 
पर आख़िर छोड़ना ही पड़ेगा 
हर सामाँ ग़ैर ज़रूरी को 
तय करना है समय की इस दूरी को 

इस सफ़र की शुरुआत में जो हम थे 
और शाम ढलने पर जो हम होंगे 
दोनों में होगा इक बड़ा सा फ़ासला 
कोई कहे इसे अनुभव 
कोई इसे कहे हौंसला 
पर आख़िर पाटना ही पड़ेगा  
इस ख़ुद से ख़ुद की दूरी को 
तय करना है समय की इस दूरी को 

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