बाट दिया है लोगों ने
अपने धड़ को अपने हाथों
काट दिया है लोगों ने
वो हिन्दू वो मुस्लिम
वो सिख वो ईसाई
नफ़रत से हर मज़हब को
पाट दिया है लोगों ने
सौहार्द्र की एक नदी कभी थी
आज रेत की शक़्ल में उड़ती है
क़ब्र पे उसकी खुदी इबारत
मेरा ख़ून किया है लोगों ने
उजाड़ न दे कोई सहरा मेरा
ज़हर पानी में घुलवा के
बची-खुची कपोलों को भी
सींच दिया है लोगों ने
सच्चाई बयाँ कर दी आपने अभिषेक भाई :-(
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
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