बग़ावत का ग़ुरूर किरदार की नादानी है
ये उसकी नहीं किस्सागो की कहानी है
कोई तो मसीहा गुज़रा होगा ज़रूर इस रस्ते
लहू की बू ये फ़ज़ा में जानी पहचानी है
तुम जिसे कहते हो पानी पे खींची लकीर
मेरी फरियाद पे हुए इंसाफ की निशानी है
वो पूछते हैं कि बस्ती लुटी तो लुटी कैसे
ये उसकी नहीं किस्सागो की कहानी है
कोई तो मसीहा गुज़रा होगा ज़रूर इस रस्ते
लहू की बू ये फ़ज़ा में जानी पहचानी है
तुम जिसे कहते हो पानी पे खींची लकीर
मेरी फरियाद पे हुए इंसाफ की निशानी है
वो पूछते हैं कि बस्ती लुटी तो लुटी कैसे
चौकीदार से पूछो जिसकी निगहबानी है
हरेक दास्ताँ भीतर उम्मीद समेटे बैठी है
ज़िन्दगी क्या फ़क़त उम्मीद की कहानी है
हरेक दास्ताँ भीतर उम्मीद समेटे बैठी है
ज़िन्दगी क्या फ़क़त उम्मीद की कहानी है
No comments:
Post a Comment