Thursday, January 17, 2019

बग़ावत का ग़ुरूर किरदार की नादानी है



बग़ावत का ग़ुरूर किरदार की नादानी है
ये उसकी नहीं किस्सागो की कहानी है

कोई तो मसीहा गुज़रा होगा ज़रूर इस रस्ते
लहू की बू ये फ़ज़ा में जानी पहचानी है

तुम जिसे कहते हो पानी पे खींची लकीर
मेरी फरियाद पे हुए इंसाफ की निशानी है

वो पूछते हैं कि बस्ती लुटी तो लुटी कैसे
चौकीदार से पूछो जिसकी निगहबानी है

हरेक दास्ताँ भीतर उम्मीद समेटे बैठी है
ज़िन्दगी क्या फ़क़त उम्मीद की कहानी है

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