तस्वीरें पलटना भी बहाना हो गया
आईने में चेहरा अब पुराना हो गया
टूटे ख़्वाबों को दफ़्न कर दिया जब से
ज़िंदगी का सफ़र भी सुहाना हो गया
कब तलक राह देखे कोई अच्छे दिनों की
छोड़ो कि अब मंज़र वो पुराना हो गया
भूखे पेटों के लिए सिर्फ़ गर्व की ही नेमतें
हाकिम का रोज़ का फ़साना हो गया
मैंने तो जो कहा बस सच ही कहा था
हरेक उठती उंगली का निशाना हो गया
आईने में चेहरा अब पुराना हो गया
टूटे ख़्वाबों को दफ़्न कर दिया जब से
ज़िंदगी का सफ़र भी सुहाना हो गया
कब तलक राह देखे कोई अच्छे दिनों की
छोड़ो कि अब मंज़र वो पुराना हो गया
भूखे पेटों के लिए सिर्फ़ गर्व की ही नेमतें
हाकिम का रोज़ का फ़साना हो गया
मैंने तो जो कहा बस सच ही कहा था
हरेक उठती उंगली का निशाना हो गया
एकदम सच कहा अभिषेक..मौजूदा हालत देखकर दिल घबराता है..इतने कम शब्दों में आइना उतार कर रख दिया
ReplyDelete🙏🙏
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 27 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसार्थक यथार्थ लेखन ।
ReplyDeleteसटीक उम्दा।
बहुत आभार!
Deleteबहुत सुंदर... सभी अशआर काबिलेतारीफ.👌👌👌👌 अभिषेक जी।
ReplyDeleteहमारे ब्लॉग पर भी पधारें...
जी ज़रूर!
Deleteबहुत सुंदर सृजन.
ReplyDeleteसादर
यथार्थ को परलक्षित करती रचना
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