एक तस्वीर जिसे उतारना बाक़ी है
यादों और ख्वाहिशों के गलीचों के बीच
कुछ ऐसा है जिसे अभी टटोलना बाक़ी है
सोचता हूँ घर के टाँड़ पे पड़े
काठ के टूटे घोड़े में
चंद कीलों के पैबंद लगा किसी बचपन को दे दूँ
कि कल की यादों में
आज के लम्हों को बचाना बाक़ी है
और... कुछ झपटी हुई पतंगें हैं
जिन्हें उड़ाना बाकी है
लूटा हुआ मांजा है ज़िन्दगी-सा
जिसे अब भी सुलझाना बाकी है
रद्दी हुए अखबारों कि एक नाव
जिसे बौछारों में बहाना बाकी है
और भी न जाने क्या क्या छुपा है
यादों के इस अटाले में
बस टाट का ये पर्दा हटाना बाकी है
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