Sunday, February 16, 2014

अटाला



एक कहानी जिसे सुनाना बाक़ी है 
एक तस्वीर जिसे उतारना बाक़ी है 
यादों और ख्वाहिशों के गलीचों के बीच 
कुछ ऐसा है जिसे अभी टटोलना बाक़ी है 

सोचता हूँ घर के टाँड़ पे पड़े 
काठ के टूटे घोड़े में 
चंद कीलों के पैबंद लगा किसी बचपन को दे दूँ 
कि कल की यादों में 
आज के लम्हों को बचाना बाक़ी है 

और...  कुछ झपटी हुई पतंगें हैं 
जिन्हें उड़ाना बाकी है 
लूटा हुआ मांजा है ज़िन्दगी-सा 
जिसे अब भी सुलझाना बाकी है 
रद्दी हुए अखबारों कि एक नाव 
जिसे बौछारों में बहाना बाकी है 
और भी न जाने क्या क्या छुपा है 
यादों के इस अटाले में 
बस टाट का ये पर्दा हटाना बाकी है 

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