नंगे पंजों के बल दौड़ते हुए
गिरने के बाद जो सौंधा अहसास है
रोज़मर्रा कि फीकी ज़िन्दगी के बीच
जो मिश्री की मिठास है
पुतलाये ठूंठ मुखौटों के बीच
जो किलकारी कि आवाज़ है
दशहत से पथराई आँखों के बीच
जो परियों का मासूम ख्वाब है
कंटीली दुनियादारी के मरुस्थल में
फूटती नई कपोल पे ओस कि महक
यकीं नहीं होता
वो कस्तूरी मेरे इतने पास है
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