आवेश उसको आख़िर में
अकेला छोड़ गया
पानी तो कुछ देर को
बरस कर गुज़र गया
टपका छत से देर तलक
टपकता छोड़ गया
आने के पाखंडों को
गिनवाया इस क़दर उसने
भलाई ख़ुद की गिनाने को
कलपता छोड़ गया
निचोड़ के उसके इतर को
इतनी कड़वाहट भर दी
खुली हवा की सांस को
तरसता छोड़ गया
आँखें सुर्ख़ अंगारों सी
ताप दूर से भभकता है
नफ़रत की इक आग में
झुलसता छोड़ गया
प्रभावशाली लेखनी! :)
ReplyDeleteAccha likha hai aapne..likhte rahiye.
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी ...विचारणीय पंक्तियाँ
ReplyDeleteशुक्रिया :-)
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