सब देख कर हुए नादाँ
कुछ कोई नहीं कहता
कुछ कोई नहीं कहता
क्यूँ पीटते हो दरवाज़े को
कि भीतर कोई नहीं रहता
कि भीतर कोई नहीं रहता
हवा का दबा के टेंटुआ
कांक्रीट के जंगल उगा लिए
कांक्रीट के जंगल उगा लिए
आतें लपेट दीं गर्दन पे
पर लालच नहीं ढहता
पर लालच नहीं ढहता
बेबसी हमारी हुए बस आंकड़े
यहाँ मरे इतने, उतने वहाँ
यहाँ मरे इतने, उतने वहाँ
लेनदार पिशाचों के सिवा किसी का
एक क़तरा नहीं बहता
एक क़तरा नहीं बहता
तब गूंजतीं हैं आवाज़ें
नक्सलबाड़ी नक्सलबाड़ी
नक्सलबाड़ी नक्सलबाड़ी
अपराधी बना डाला कहके उन्हें कि
तंत्र में यक़ीं नहीं रहता
तंत्र में यक़ीं नहीं रहता
लौटा दो हक़ उन्हें उनका
कि वो भीख नहीं मांगते
कि रह जाते हैं बस कारतूस ही
शेष कोई नहीं रहता
कल 18/05/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बहुत सुंदर वाह ।
ReplyDeleteThanks Sushil ji
Deleteबहुत मार्मिक।
ReplyDeleteThanks Asha ji
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