वो दिन
वो एक पल
जब कोई सांस कभी दुबारा
भीतर न जा सकेगी
दिमाग की नसों में प्रतिपल
बौखलाए फिरते जुलूस
थम जायेंगे
मशीन के सभी सूचकांक
गिर जायेंगे तली में
और बन जायेगी
एक लकीर
फिर कभी आइना
ये अक्स ना देखेगा
काल का डमरू
थम जाएगा
और साथ ही थम जाएगा
उसका तांडव भी
चंद नुक्ते चीखेंगे
चिलाएंगे
पर उनकी सदा के शब्द
न पार पायेंगे
पूर्णविराम की उस दीवार को
जिसके पार
कोई शब्द नहीं
सिर्फ अर्थ होंगे
मेरे अर्थ
जो एकाकार होंगे
व्याप्त से
वो दिन
वो एक पल
nice
ReplyDeleteThanks
DeleteGreat post thank yyou
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