झांका देखा खिड़की से तो
सब कुछ हसीन दिखता था
ताला लगाते बाहर आते
तब तक मौसम बदल गया
बैठता था वो बूढ़ा जो
प्याऊ के उस मुहाने पर
जब से पानी क़ैद हुआ
तब से जाने किधर गया
नहीं उगलती सोना चांदी
बेबसियां अब निगलती है
धीरे धीरे कसते कसते
फंदा आख़िर लटक गया
धूप ही है बस बची हुई
दे सकें जो कुछ विरासत में
पापी पेट हमारा ये
बाक़ी सब तो निगल गया
नहीं उगलती सोना चांदी
ReplyDeleteबेबसियां अब निगलती है
धीरे धीरे कसते कसते
फंदा आख़िर लटक गया
क्या बात है. बहुत ही मार्मिक .
बहुत मार्मिक।
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ReplyDeleteझांका देखा खिड़की से तो
सब कुछ हसीन दिखता था
ताला लगाते बाहर आते
तब तक मौसम बदल गया
bahut sundar bat kahi hai aapne abhishek ji