Friday, January 11, 2019

जाम हो, शराब हो, पर ख़ुमारी न हो




जाम हो, शराब हो, पर ख़ुमारी न हो
ज़िक्र हो ज़ख़्मों का, तिरी शुमारी न हो

मिट्टी के भाव न बिके ज़िंदगी तिरा खज़ाना
अधूरी हसरतों का गर कारोबारी न हो

बड़ी मासूमियत से तिरे दर पे आए हैं हाकिम
अब ऐलान-ए-नाइंसाफी में इंतिज़ारी न हो

थक गई है अवाम भी वोटों की डुगडुगी से
 
ऐ ख़ुदा कभी तो तमाशे में मदारी न हो

वो कभी न बनाएंगे तुम्हें रहनुमा शहर का
जो मंदिर-मस्जिद करने की बीमारी न हो

5 comments:

  1. बेहद शुक्रिया आपका 🙏

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  2. बहुत सुन्दर अभिषेक जी.
    तमाशे में मदारी नहीं होगा तो हम बंदरों को नचाएगा कौन? हम ही तो दर्शक हैं और हम ही तो तमाशा हैं.

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  3. Bahut Khoob Abhishek! Khastaur par akhiri ki do panktiyan...

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  4. उम्दा तमाशा और तमाशबीन।

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